लाल बिंदी, सिंदूर भरी मांग, चश्मे के पीछे चमकती मुस्कुराती बड़ी बड़ी अंखियां, माटी की खनक, मिजाज की ठसक, गरिमा और मातृत्व से लबालब आत्मीय मुस्कान.. देवी स्वरूपा आभा मंडल! बड़प्पन ऐसा कि, आपका संकोच खत्म कर दे, सहजता ऐसी, कि आपको अचरज में डाल दे, प्रेम जैसे उमड़ी बदरिया की तरह आपको अपने स्नेह से भिगो दे...आपके माता पिता ने आपको बचपन में ही पहचान लिया था तभी तो नाम दिया, शारदा! जिस युग में स्त्रियों का बाहर निकलना भी एक बड़ी बात थी, आपने कला जगत में स्त्रियों की उपस्थिति को सम्मान दिलाया, सबको सिखाया कि कलाकार यदि चाहे, तो अपनी कला के दम पर अपनी माटी अपनी बोली अपने अंचल अपनी संस्कृति का पर्याय बन सकता है। भारतीय संस्कृति, और भोजपुरी को शारदा जी ने जो उत्कर्ष और गरिमा प्रदान की उसका आकलन कर पाना असम्भव है। आप जहां रहेंगी, शारदा सी सबकी प्रार्थनाओं में रहेगी। अनंत की यात्रा के लिए आपका प्रस्थान शांतिमय हो।
आपके जाने की खबर अभी तक स्वीकार नहीं कर पाया हूं।